अपने-अपने दुखड़े

15-11-2022

अपने-अपने दुखड़े

मधु शर्मा (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

भीतर ग़म बाहर मुस्कुराते मुखड़े हैं, 
हर किसी के अपने-अपने दुखड़े हैं, 
 
भरा-पूरा परिवार कभी हमारा था, 
किलकारियों से गूँजे घर सारा था, 
जा बसे विदेश वो दिल के टुकड़े हैं, 
हर किसी के अपने-अपने दुखड़े हैं। 
 
घर-आँगन में हरपल ख़ुशहाली थी, 
आँखों में चमक मुख पर लाली थी, 
चिंतित अब चेहरे सिकुड़े-सिकुड़े हैं
हर किसी के अपने-अपने दुखड़े हैं। 
 
होली उनके घर से शुरू व ख़त्म होती, 
दीवाली-ईद पार्टी वहीं जमकर होती, 
लंगोटिया यार अब रहें उखड़े-उखड़े हैं, 
सब के ही 'मधु' अपने-अपने दुखड़े हैं। 

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