मूड कवियों का

15-11-2025

मूड कवियों का

मधु शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

न पूछें मूड के लिए कवि बदनाम क्यों हैं, 
बेवजह नाराज़ तो कभी मेहरबान क्यों हैं। 
सिर्फ़ दो-एक ही कवि यहाँ बस सुखी हैं, 
बाक़ी क़िस्मत के मारे या ख़ुद से दुखी हैं। 
 
हो जाए मुहब्बत तो दास्तान लिख बैठते हैं, 
खो जाए मुहब्बत तो दीवान लिख बैठते हैं। 
जज़्बात को बेहतरीन अल्फ़ाज़ में पिरोते हैं, 
कर न सकें तो बेचैन, बेकस, बेज़ार होते हैं। 
 
लिखने लगें तो तमाम रात फिर सोते नहीं, 
न लिखें तो हफ़्तों-महीने क़लम छूते नहीं। 
कभी बह्र तो, कभी क़ाफ़िये का मेल नहीं, 
यह ग़ज़ल लिखना जनाब कोई खेल नहीं। 
 
कवि यूँ तो कुछ सुनाने गोष्ठी में आते हैं, 
मंच पे फिर डेरा डाल कुछ बैठ ही जाते हैं। 
ताली बीच-बीच में ज़बरदस्ती बजवाते हैं, 
श्रोता तो बेचारे बग़लें झाँकने लग जाते हैं। 
 
खिल उठें जब दाद पर दाद मिलती जाये, 
महफ़िल छोड़ वर्ना चल देते, मुँह फुलाये। 
बिगड़ जाये कब मूड इसीलिए बदनाम हैं, 
बेवजह नाराज़ तो कभी यूँ ही मेहरबान हैं। 

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