दहेज़ 

मधु शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

वरमाला के बाद ख़ूबसूरत पंडाल में, 
नाच-गाने व ख़ुशियों भरे माहौल में, 
लालची लड़के वालों ने रख दी माँग, 
कार दें, नहीं तो रखें बेटी अपने पास। 
 
पिता चौंका, बेबसी से बेटी को निहारा, 
धीरे से उसने अपनी पगड़ी को उतारा, 
इशारा करके पत्नी को समीप बुलाया, 
हाथ बेटी का धीमे से पकड़ उसे उठाया। 
 
भरे गले से फिर वह यूँ बोला—
“माँगें इनकी बेटी तुझे ताउम्र करेंगीं तंग, 
रह सकेगी क्या इन ज़ालिमों के संग?” 
सुनकर दूल्हे के चेहरे का उड़ गया रंग, 
और पंडाल में भी बैठे सभी रह गए दंग। 
 
चुप्पी साधे दूल्हे को दुल्हन ने ही झँझोड़ा— 
“ऐन वक़्त पर प्रभु ने भांडा तुम्हारा फोड़ा। 
तुम्हें अब कोई क्यों अपनी बेटी ब्याहेगा, 
फैलते ही ख़बर देश सावधान हो जाएगा, 
कि जो अपने बेटे की ऐसे बोली लगाएगा, 
मुँह अपना इसी तरह वो काला करवाएगा।” 
 
लाके चूड़ियाँ सखियों ने दूल्हे को पहना दीं, 
उतारकर वरमाला,  माला जूतों की सजा दी। 
पुलिस आई और ले गई दूल्हे को हवालात, 
फूलों की सेज की जगह कटी जेल में रात। 
 
स्विट्ज़रलैंड में हनीमून! हाए टूटे सब सपने, 
छूटी नौकरी और छोड़ गये उसके सब अपने। 

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