काहे दंभ भरे ओ इंसान

15-12-2021

काहे दंभ भरे ओ इंसान

मधु शर्मा (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ज्ञानी अपने ज्ञान पे कर रहा अभिमान, 
बल अपना दिखाके इतरा रहा बलवान। 
 
तप के बारे लम्बी-लम्बी हाँके तपस्वी, 
कविता पढ़के तालियाँ बजवाते कवि। 
 
धर्म होता जा रहा धर्मात्मा का विलोप, 
धन के भंडार भरे धनी क्यों करता लोभ। 
 
सेवक कहे उस जैसी करे न कोई सेवा, 
साधु क्यों चाहे अपनी साधना का मेवा? 
 
दिखावे के लिए करते कुछ भक्त भक्ति, 
घमंड ने नाश कर दी बुद्धिमान की बुद्धि। 
 
पूजा से पूर्व पुजारी की फ़िक्स दक्षिणा, 
नाम कमाने हेतु रचनाकार लिखते रचना। 
 
मेहनत करके भी शान्ति इन्हें मिलती नहीं, 
दंभ भरे मन में झाँके, अड़चन वहीं कहीं। 

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