मेरी हमसायी

01-04-2024

मेरी हमसायी

मधु शर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

देखकर रोशनी आँखें चौंधियाईं, 
अँधेरों की आदी है मेरी हमसायी। 
 
दो क़दम चली भी और लौट आई, 
कालकोठरी की आदी है हमसायी। 
 
भरी महफ़िल देखकर हिचकिचाई, 
तन्हा रहने की आदी मेरी हमसायी। 
 
मुस्कुराहट आने पर वह बौखलाई,  
उदास रहने की जो आदी हमसायी। 
 
बहार ज़िंदगी में आई तो कसमसाई, 
दुख सहते रहने की आदी है हमसायी। 
 
पुचकार सुन आँख उसकी भर आई, 
दुत्कार की केवल आदी है हमसायी। 
 
घर बसाने की बात सुन वह भरमाई, 
बेघर बारम्बार हुई है मेरी हमसायी। 

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