14 जून वाले अभागे अप्रवासी

01-09-2023

14 जून वाले अभागे अप्रवासी

मधु शर्मा (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

सपने सुनहरे सजाकर खुली आँखों में, 
पार की थी अपनी चौखट अभागों ने। 
 
लालची एजेंट्स ने आव देखा न ताव, 
सात सौ लोगों से भर ली थी वह नाव। 
सीरियाई, मिस्र-वासी व फ़िलिस्तीनी, 
सुना है सौ के लगभग थे पाकिस्तानी। 
 
एजेंट को लाखों के देने के चक्कर में, 
बेच देते हैं पूर्वजों की अमानत पल में। 
मुँह खोले खड़ा काल, उन्हें पूरा भान है, 
जान कर भी लोग फिर भी अनजान हैं। 
 
बन्द लॉरी के भीतर या ऐसी ही नावों में, 
मृत-शरीर हर वर्ष पाये जाते हज़ारों में। 
प्रभु! मौत का यह खेल चलेगा कब तक, 
जड़ है पैसा तो उखाड़ ही डालें यह जड़। 
 
भटकेंगे न फिर इधर-उधर न होगा कष्ट, 
मेहनत कर पेट पालेंगे रहेंगे सदा सन्तुष्ट। 

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