खाते-पीते घरों के प्रवासी 

01-01-2022

खाते-पीते घरों के प्रवासी 

मधु शर्मा (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

खाते-पीते घरों के प्रवासी यहाँ आकर पछताते हैं, 
लेकिन अपने देश में जाकर बसने से घबराते हैं। 
 
वहाँ घर में पकवान बने देखकर मुँह बनाते थे, 
आये दिन बाहर से पीज़ा-बर्गर खाकर आते थे, 
अब दिन-रात घर की दाल-रोटी याद आते हैं, 
लेकिन देश वापस जाकर बसने से घबराते हैं। 
 
बाहर आने के लालच में घर-बार बेच दिया, 
आके यहाँ चूहेदानी जैसे घर में रहना पड़ गया, 
चाहे वहाँ अब संगेमरमर के महल वो बनवाते हैं, 
लेकिन देश वापस जाकर बसने से घबराते हैं। 
 
डिस्को, हॉलिवुड फ़िल्मों के ये दीवाने होते थे, 
लेकिन अपने ही गीत-संगीत से बेगाने होते थे, 
वहाँ जाकर अब तबला, सितार लेकर आते हैं, 
लेकिन देश वापस जाकर बसने से घबराते हैं। 
 
हुक्म चलातीं मैडम और काम करती थी बाई, 
यहाँ चौका-चूल्हा करें व टॉयलट की सफ़ाई, 
तंग आकर बाई रूपी बहू से बेटे को ब्याहते हैं, 
लेकिन देश वापस जाकर बसने से घबराते हैं। 
 
वहाँ एसी दफ़्तर में बैठ दिनभर रोब थे झाड़ते, 
अब ठिठुरती रातों में काम करके पेट हैं पालते, 
बच्चे सँभालने के लिए माँ-बाप को बुलवाते हैं, 
लेकिन देश वापस जाकर बसने से घबराते हैं, 
खाते-पीते घरों के प्रवासी यहाँ आकर पछताते हैं। 

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