जीवन फ़ोन बिन

15-08-2025

जीवन फ़ोन बिन

मधु शर्मा (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

काटे दो दिन फ़ोन बिन,
बीता हर पल गिन-गिन।
 
इकलौता था टूट गया,
भाग्य हमारा फूट गया।
सुबह बिना अलार्म के,
आँख खुली आराम से।
 
भगदड़ और इतनी हड़बड़ी
कि बिन दुपट्टे निकल पड़ी।
मोच आ गई तेज़ भागने से,
बस निकल गई सामने से।
 
बिन स्क्रीन लिखूँ यह कैसे,
पैंसिल व रबर ढूँढी कहीं से।
कविता जब पन्ने पर उतरी,
लिखावट मेरी पल्ले न पड़ी।
 
बिताये जैसे-तैसे वो दो दिन,
ज़िंदा लाश भाँति फ़ोन बिन।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
काम की बात
लघुकथा
चिन्तन
कविता
सजल
नज़्म
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - क्षणिका
ग़ज़ल
चम्पू-काव्य
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कविता
बच्चों के मुख से
आप-बीती
सामाजिक आलेख
स्मृति लेख
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में