लंगर

मधु शर्मा (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

8 नवंबर 2022 को गुरु नानक जी के प्रकाश-उत्सव दिवस पर यह कविता सभी सिक्ख भाई-बहनों को समर्पित करती हूँ। 

 
भूकंप, सुनामी या करोना जहाँ कहीं भी धावा बोलते हैं, 
सिक्ख भाई-बहन ही सबसे पहले वहाँ भंडारा खोलते हैं। 
 
नहीं पूछते कि आप कौन देश या किस जाति के लोग हैं, 
निष्काम सेवा करते व ज़ात-पात को मानते बड़ा रोग हैं। 
‘वाहे गुरु सतनामजी’ के जप का कानों में रस घोलते हैं, 
सिक्ख भाई-बहन रात-दिन एक करके लंगर खोलते हैं। 
 
‘तेरा तेरा’ कहते ये भाई लंगर बाँटते कभी थकते नहीं, 
गुरु नानक जी के दिखाये मार्ग से कभी पीछे हटते नहीं, 
किसकी झोली में कितना डाला, कभी ये नहीं तोलते हैं, 
सिक्ख भाई-बहन रात-दिन एक करके लंगर खोलते हैं। 

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