कहावतें पुरानी, नज़रिया लेकिन नया-002

01-10-2025

कहावतें पुरानी, नज़रिया लेकिन नया-002

मधु शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

1
नमक छिड़कने लोग रोज़ चले आते हैं, 
ज़ख़्म इसीलिए हमारे भर नहीं पाते हैं। 
2
बुलाने पे उनके जश्न में दौड़े गये हम नंगे पाँव, 
पूरा नंगा कर दिया उन्होंने खोल के हमारे राज़। 
3
आँखों में हमारी झोंकते रहे धूल आप, 
धूल बने हम जहाँ, होंगे कल आप वहाँ। 
4
नक़ली पानी आँख से बहने से मुकर गया, 
सब किये-कराए पे उसके पानी फिर गया। 
भेड़ की खाल में भेड़िया चल जाता नई चाल, 
बिन उसकी ओर देखे मगर मजमा गुज़र गया। 
5
एक शहर से दूसरे भटकती रही, 
आँधियों में इधर-उधर उड़ती रही, 
लग जाती ठिकाने होती यदि मिट्टी 
धूल थी वो इसीलिए बहकती रही। 
6
अपने ज़ख़्मों पर से नमक रोज़ झाड़ता है, 
मजबूर है इसलिए कुछ कर नहीं पाता है, 
बैठ सकता है आराम से अपने घर में मगर
मज़दूर है, नमक ढो-ढोकर पेट पालता है। 

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