दरिया आग का 

15-02-2025

दरिया आग का 

मधु शर्मा (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 
 लगे थे बरसों हमें जिस घर को बनाने में,
पल भी न गँवाया आपने दिवारें गिराने में।
 
कहते थे जाते हुए, परदेस जल्द बुलाऊँगा,   
ढल चुकी उम्र, जल्दी क्या है अब बुलाने में। 
 
मिलेंगे वो ज़रूर, हाथ की लकीरें  कहती हैं,
हम नहीं मानते इस तरह मिलने-मिलाने में। 
 
लाके सामने खड़ा कर दिया क़िस्मत ने देखो,   
और अड़े हुए वो आपस के सितारे मिलाने में।    
 
दरिया आग का तो पार कर लिया है ‘मधु’ ने,
देर कर दी मगर किसी ने कश्तियाँ जलाने में।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख
सजल
ग़ज़ल
लघुकथा
कविता
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में