वह अनामिका

01-02-2022

वह अनामिका

मधु शर्मा (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

न वह सीता की भाँति . . . 
अपने पति राम द्वारा
जंगलों में त्यागी गई है! 
न ही अहिल्या की भाँति . . . 
किसी ऋषि गौतम द्वारा
निष्ठुरता से ठुकराई गई है! 
द्रौपदी समान रूपवती तो है, 
परन्तु न ही उसकी भाँति . . . 
दाँव पर लगाई गई है! 
 
फिर भी वह . . . 
मेरे शहर की भीड़ के जंगल में, 
सीता की भाँति . . . 
दिन भर भटकती रहती है। 
और रात भर
किसी भी पार्क के बैंच पर, 
अहिल्या की भाँति . . . 
शिला बन ठिठुरती रहती है! 
 
चीर-हरण के दौरान
द्रौपदी की पुकार सुन
आँचल प्रभु ने बड़ा कर दिया था . . . 
परन्तु इस द्रौपदी के अपनों ने
इसका सर्वस्व लूट इसे
फ़ुटपाथ पर ला खड़ा कर दिया था। 
 
बेघर हुई इस अनामिका को देख
मधु की आत्मा क्रंदन कर रही है, 
“जाने ऐसी कितनी सीता, द्रौपदी, अहिल्या
आए दिन जी रही व मर रही हैं!” 

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