बूँदें ओस की

15-07-2022

बूँदें ओस की

मधु शर्मा (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

1.
चाँदनी में चमकते हुए मोती, 
चाँद की ओर देख रात रोती, 
इतनी जल्दी सुबह क्यों होती! 
2.
पत्थर शहर के पथरीले बाग़, 
बिन पेड़-पौधे और बिन घास, 
बच्चे पूछें, ओस कैसी होती? 
3.
दिन भर चुपचाप सहती
फिर रातों में रोती धरती। 
4.
उपहार जो हर रात भेंट करती, 
उठ सुबह जब मैं उन्हें बटोरती
छूते ही पानी बन जायें वो मोती। 
5.
प्रेमी के प्रगाढ़ आलिंगन में ज्यों 
टूट जाये माला बिखर जायें मोती। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कहानी
कविता
सजल
हास्य-व्यंग्य कविता
लघुकथा
नज़्म
कहानी
किशोर साहित्य कविता
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
कविता - क्षणिका
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में