मेरी स्वाभाविकता 

15-12-2024

मेरी स्वाभाविकता 

मधु शर्मा (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

पंडाल खचाखच भरा हुआ था। कथा का आज प्रथम दिवस था। कथावाचक के सरल व रोचक शब्दों को सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो सुन रहे थे। 

राम-जन्म के प्रसंग के चलते कथावाचक ने भाव-विभोर हो भजन आरम्भ किया। उनकी मंडली के सात-आठ वादकों ने भी उनके सुर से मिलाते हुए अपने-अपने वाद्ययंत्रों पर ऐसी मधुर तान छेड़ी कि पूछिए न! पंडाल में बैठी अनेक बहन-बेटियाँ झट से उठ खड़ी हुईं (व कुछ मुट्ठी भर बच्चे व भाई भी)। देखते-देखते वे भक्त लगे ठुमके पर ठुमका लगाने। उनकी भक्ति का यह रूप देख मेरा श्रद्धा से नतमस्तक हो जाना स्वाभाविक था। 

अगले दिन राम-वनवास के प्रसंग में महाराजा दशरथ के प्राण-पखेरू का करुणा भरे दृश्य का वर्णन करते हुए वह कथावाचक अपने श्रोताओं को उपदेश दे रहे थे कि राजा हो या रंक, सभी को एक न दिन इस संसार छोड़कर जाना ही होगा। और फिर भाव-विभोर हुए कथावाचक ने क़व्वाली की धुन पर वह प्रसिद्ध भजन गाना आरम्भ किया:

‘जब तेरी डोली निकाली जाएगी, 
बिन मुहूर्त के उठा ली जाएगी।’

उनके वादकों ने भी उनके सुर से मिलाते हुए सदा की तरह ज्योंही अपने-अपने वाद्ययंत्रों पर मधुर तान छेड़ी, तो पंडाल में बैठी अनेक बहन-बेटियाँ बिन सोचे-समझे झट से उठ खड़ी हुईं (व कुछ मुट्ठी भर बच्चे व भाई भी), और लगे सभी ठुमके पर ठुमका लगाने। उनकी भक्ति का यह रूप देख मेरे मस्तक का लज्जा से झुक जाना स्वाभाविक था। 

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