ऐसे-वैसे लोग

15-10-2023

ऐसे-वैसे लोग

मधु शर्मा (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ऐसे भी न जीने दिया, 
वैसे भी न जीने दिया
उसे ऐसे-वैसे लोगों ने! 
 
कठपुतली बना उसे नचा डाला, 
तमाशा ज़िन्दगी का बना डाला, 
ऐसे-वैसे लोगों ने! 
ऐसे भी न जीने दिया, 
वैसे भी न जीने दिया
उसे ऐसे-वैसे लोगों ने! 
 
छोटा सा घर उसका फूँक दिया, 
सामान बचा-खुचा भी लूट लिया
 ऐसे-वैसे लोगों ने! 
ऐसे भी न जीने दिया, 
वैसे भी न जीने दिया
उसे ऐसे-वैसे लोगों ने! 

 

रही चुप तो होती रही रुसवाई, 
आपबीती सुनाई तो हँसीं उड़ाई, 

ऐसे-वैसे लोगों ने! 
ऐसे भी न जीने दिया, 
 वैसे भी न जीने दिया
उसे ऐसे-वैसे लोगों ने! 
 
सोचा उसने, दाता के दरबार में जाए, 
ख़ज़ाने से उसके थोड़ा सकूँ माँग लाए, 
इंसानों के वेश में मिले वहाँ भी शैतान, 
कर रखा रब को उसी के घर में नीलाम, 

ऐसे-ऐसे लोगों ने! 
ऐसे भी न जीने दिया, 
वैसे भी न जीने दिया
उसे ऐसे-वैसे लोगों ने! 

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