डरपोक निडर

01-01-2025

डरपोक निडर

मधु शर्मा (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

डर-डर कर क्यों वो आता-जाता है, 
दर-दर की ठोकरें बेचारा खाता है। 
 
कोई जान न ले दिवालिया हो चुका, 
भर-भर इसलिए झोलियाँ लुटाता है। 
 
फ़ुरसत कहाँ है किसी के पास इतनी, 
घर-घर का वो ही दर खटखटाता है। 
 
हँस-हँस कर मिलता है यूँ तो सभी से, 
झर-झर आँसू फिर तन्हा हो बहाता है। 
 
हरेक की नज़र में तो वो है निडर ‘मधु’, 
दिन ढले घर अपने जाने से घबराता है। 

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