बच्चो, इनसे बचो

15-11-2025

बच्चो, इनसे बचो

मधु शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

धर्म के नाम पर धन कमाते, 
जीवन पापों में डूबा बीताते। 
 
दृश्य नरक के सुनाकर डराते, 
स्वर्ग का लालच दे भटकाते। 
 
घिनौना है मोह वे तुम्हें बताते, 
स्वयं सपरिवार घूमते-घूमाते। 
 
पैसा हाथ की मैल, समझाते, 
सोने के अपने महल बनवाते। 
 
बुरी है माया, बारंबार दोहराते, 
हीरे-मोतियों से लदे मुस्कुराते। 
 
गुरु बनके चेले अंधाधुंध बनाते, 
भीड़ अंधविश्वासियों की बढ़ाते। 
 
कच्ची बुद्धि अभी तुम्हारी, बच्चों, 
बचो ठगों से जो तुम्हें बरगलाते। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य कविता
सजल
किशोर साहित्य कविता
कहानी
काम की बात
लघुकथा
चिन्तन
कविता
नज़्म
कविता - क्षणिका
ग़ज़ल
चम्पू-काव्य
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर साहित्य कहानी
बच्चों के मुख से
आप-बीती
सामाजिक आलेख
स्मृति लेख
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में