सच का ये कैसा सवाब है

01-03-2025

सच का ये कैसा सवाब है

मधु शर्मा (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुरब्बा मुज़ाफ़
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़्तीअ: 22    22    22    2
 
सच का ये कैसा सवाब है
माँगता जो हर हिसाब है।
 
उठ रहे उल्टे-सीधे सवाल
जिनका न कोई जवाब है।
 
घर से बाहर निकलने को
ओढ़ लिया यह नक़ाब है।
 
पढ़ लें पन्ना-पन्ना जनाब
खोल दी दिल की किताब है।
 
होते हैं हाथ ज़ख़्मी 'मधु'
माली चुने जब गुलाब है।

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