चादर तनहाई की 

15-09-2025

चादर तनहाई की 

मधु शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

चाँदनी जब बादलों से छनी होती है, 
एक चादर तनहाई की तनी होती है। 
 
तू बदल चुका है इस क़दर दोस्त कि, 
तेरी ही महफ़िल में तेरी कमी होती है। 
 
क्यों पढ़ते हो मेरे हँसते हुए चेहरे को, 
इन झुकी आँखों में छुपी नमी होती है। 
 
घर सौतन का अब पिया का ठिकाना, 
यहाँ अँधेरा, वहाँ गहमागहमी होती है। 
 
आदत नहीं रही वीराने में आहटों की, 
सुनके ज़रा सी धड़कन थमी होती है। 
 
कल परसों, यूँ बरसों बीते इंतज़ार में, 
नज़र फिर भी दर पर ही जमी होती है। 
 
रात जब भी रो-रो के गुज़रती है ‘मधु’, 
तकिए पे सुबह वो दास्ताँ छपी होती है। 

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