सती इक्कीसवीं सदी की

15-09-2022

सती इक्कीसवीं सदी की

मधु शर्मा (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

अनोखी औरत थी स्वयं ही हो गई सती, 
बता गई जाते-जाते, उसने पा ली गति। 
 
देखा था दादी को, माँ ने भी तो सहा था, 
बच्ची थी यद्यपि, मानो कल ही हुआ था। 
 
विधवा होती जब मेरे गाँव की कोई भी स्त्री, 
धकेल दी जाती नरक में वो नारी जीते जी। 
 
मुँड़वा कर सिर, जोड़ा एक सफ़ेद वस्त्र का, 
व भोजन रूखा-सूखा केवल एक वक़्त का। 
 
शादी-ब्याह हो तीज-त्यौहार या कोई शगुन, 
सामने पड़ जाए तो मानी जाए है अपशकुन। 
 
पड़ी कोने में कैसे बिताती पूरा जीवन अपना, 
यूँ जीने से तो बेहतर है मेरा आत्मदाह करना। 

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