बेहतर होगा

01-04-2022

बेहतर होगा

मधु शर्मा (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

चंद राज़, राज़ ही रहने दें, बेहतर होगा, 
कुछ बातें मगर कह लेने दें, बेहतर होगा। 
 
ज़ख़्म नासूर न बन जायें कहीं भीतर ही, 
इन आँसुओं को बह लेने दें, बेहतर होगा। 
 
चुभते हैं बेशक, फिर भी मीठे-मीठे से हैं, 
दर्द पराये सही, सह लेने दें, बेहतर होगा। 
 
यह रेत का बना है, लेकिन घर है हमारा, 
न तोड़ें, ख़ुद ही ढह लेने दें, बेहतर होगा। 
 
जलाएँ या दबा दें क्या फ़र्क पड़ेगा, मधु
मिट्टी हूँ, मिट्टी में मिलने दें, बेहतर होगा। 

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