दुविधा

15-03-2025

दुविधा

मधु शर्मा (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

“आन्या! यही है वह सलोनी . . .” मॉल में अचानक भेंट हो जाने पर तान्या ने सलोनी का परिचय देते हुए अपनी छोटी बहन से कहा, “देखा, सलोनी की शक्ल तुमसे कितनी मिलती-जुलती है, है न! मैंने इसे भी बताया था कि ऑफ़िस जॉइन करने पर हमारे स्विचबोर्ड-रूम में पहले दिन इसे दूर से देखा तो चकरा गई थी कि आन्या वहाँ कहाँ से टपक पड़ीं।”

तान्या की बात से दोनों बहनें खिलखिला कर हँस पड़ीं लेकिन सलोनी केवल धीमे से मुस्कुरा दी। अपनी बहन की भाँति आन्या भी चुलबुली-सी थी। परन्तु फिर भी उसकी बहुत कोशिश करने पर भी सलोनी उनकी वार्तालाप में भाग न लेकर अपनी घड़ी की ओर देखती रही। 

तान्या समझ गई कि सलोनी को घर जाने की जल्दी होगी, इसलिए उसने अपनी कार में लिफ़्ट देने के लिए उसे ऑफ़र भी किया। परन्तु सलोनी उन्हें बाय कहकर चल दी कि वह पहली दफ़ा अकेली मॉल आई है तो उसके डैडी यहाँ छोड़ गये थे और अब सामने वाले बस-स्टॉप पर वह उसे लेने आ रहे हैं। 

परन्तु कार-पार्क से बाहर निकलते हुए दोनों बहन आश्चर्यचकित रह गईं, जब उन्होंने सलोनी को एक बस में जाते देखा। फिर यह सोचकर चुप हो गईं कि उसके पिता शायद किसी मजबूरी के कारण न आ पाये हों। 

आन्या रास्ते भर तान्या से सलोनी के बारे पूछती रही और सलोनी केवल यही बता पाई कि वह ऑफ़िस में भी हरदम चुपचाप, गुमसुम सी, सभी से कटी-कटी रहती है, इसलिए उसे भी सलोनी के बारे कुछ ज़्यादा मालूम नहीं। 

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कुछ सप्ताह बाद तान्या का इक्कीसवाँ जन्मदिन आने वाला था। बहन को सरप्राइज़-पार्टी देने के उद्देश्य से आन्या ने अपने मॉम-डैड व तान्या की दो अंतरंग सखियों के साथ मिलजुल कर बहुत ज़ोरो-शोर से एक बड़ा हॉल बुक करवा पूरे आयोजन की तैयारी करनी आरम्भ कर दी। लेकिन तान्या को कानों-कान इसकी भनक न मिले तो उसके ऑफ़िस में सलोनी से सम्पर्क कर उसे कहीं अकेले में मिलने का आग्रह किया। 

सलोनी काम के बाद ऑफ़िस से कुछ ही दूर एक बस-स्टॉप पर आन्या से मिलने आ पहुँची। आन्या ने उसे अपनी योजना बताई और सलोनी को पार्टी का न्यौता देते हुए कुछ कार्ड देकर निवेदन किया कि वह इन्हें अपने उस छोटे से ऑफ़िस में बाँट दे। और कहा कि अगले सप्ताह तक उसमें दिए गये उसके मोबाइल नम्बर पर सभी लोग वट्सअप कर दें कि वे आ पायेंगे या नहीं ताकि केटरिंग वालों को वह बता सके कि कितने लोगों के लिए खाना तैयार करना होगा। सलोनी अपनी आँखें नीचे किये आन्या की चुलबुली बातें सुनती रही और केवल अपना सिर हिला कर हामी भरती रही। आन्या ने जब उसका धन्यवाद करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो सलोनी मुँह ऊपर उठा कर उसके बढ़े हाथ को कुछ पल थाम एक बुत समान वहीं खड़ी रही। उस समय सलोनी की आँखों के कोर से आँसू जैसे बरबस बहने के लिए तैयार खड़े हों। इससे पहले आन्या उससे कुछ पूछ पाती कि सलोनी की बस आ पहुँची और वह भर्राई आवाज़ में केवल इतना ही कह पाई, “आय'म सॉरी आन्या, तुमसे कल फ़ोन पर बात करूँगी। और तुम्हारा यह काम भी कल ही कर दूँगी . . . ” आन्या उसकी आगे की बात सुन न पाई क्योंकि वह मुड़ कर बस की ओर जा चुकी थी। 

अगले दिन सलोनी ने फ़ोन तो किया और ऑफ़िस में सभी को कार्ड बाँटने का बता कर बोली, “आय'म सॉरी आन्या, मैं पार्टी में आ न पाऊँगी। क्योंकि उसी वीकैंड मेरी मदर को कुछ टैस्ट वग़ैरह के लिए हॉस्पिटल में ऐडमिट होना होगा और मेरा उनके पास रहना ज़रूरी है।”

आन्या के बहुत पूछने पर सोनाली ने यही कहा कि टैस्ट के रिज़ल्ट आ जाने पर ही मालूम होगा कि क्या बीमारी है। 

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तान्या के जन्मदिन की पार्टी का फ़ंक्शन बहुत ही बढ़िया ढंग से सम्पन्न हो गया था। होता भी क्यों न! आन्या ने अपनी दीदी के लिए दिन-रात एक कर इतने प्रेम व लगन से इतनी भव्य व्यवस्था जो की थी। पार्टी में भी उन दोनों बहनों के बीच ऐसे गहरे अपनत्व को देख सभी कह रहे थे कि हमने भगवान राम व भरत के अटूट प्रेम के बारे केवल सुना ही है, ये दोनों तो उस जैसी जोड़ी की साक्षात्‌ उदाहरण हैं। 

उस पार्टी के कुछ दिनों बाद एक दोपहर आन्या अभी कॉलेज से लौटी ही थी व लंच के बाद अपनी मॉम के साथ बैठी फ़ंक्शन के फोटो, जो उसकी व तान्या के दोस्तों ने वट्सअप पर भेजे थे, देख रही थी। कुछ एक में अपने टेढ़े-मेढ़े हाव-भाव देख माँ-बेटी दो सहेलियों की भाँति हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही थीं। तभी डोरबैल बजी और आन्या ने यह सोच दौड़ कर दरवाज़ा खोला कि शायद डिलीवरी वाला उसका पार्सल लेकर आया हो। परन्तु सलोनी को सामने देख पहले तो हक्की-बक्की रह गई लेकिन अगले ही पल उसे गले लगाकर बैठक में प्यार से खींचती ले गई जहाँ उसकी मॉम हैरान हुई उन दोनों को देख रही थीं। 

आन्या द्वारा परिचय कराते ही उन्होंने सलोनी को गले से लगा लिया व अपने ही समीप बिठा लिया। सलोनी सोफ़े पर धीमे से बैठते हुए कुछ डरी व सहमी सी आवाज़ में बोली, “सबसे पहले तो मैं इस तरह बिन बताए अचानक आने के लिए आप दोनों से माफ़ी माँगती हूँ . . . मेरी कुछ मजबूरी थी। आने को तो बहुत पहले आ जाती लेकिन तान्या की पार्टी के बाद ही आना सही लगा . . . और तान्या के लिए उसके बर्थडे पर यह गिफ़्ट, जो मैं ऑफ़िस में इतने दिनों से न जाने की वजह से उसे दे न पाई, सोचा आज आपसे मिल भी लूँ और यह . . .”

तान्या की मॉम चाय बनाने का कहकर उठने ही वाली थीं लेकिन सलोनी ने उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया। वह भी सम्मोहित सी हुईं उसकी बात मानकर बैठ गईं। सलोनी बोली, “मैं आप दोनों का अधिक समय नहीं लेना चाहती . . . और फिर तान्या के ऑफ़िस लौटने से पहले ही मुझे यहाँ से जाना होगा . . . और अंकल के भी आने से पहले।

“मैं आज आपको वह बात बताने जा रही हूँ जो आज तक किसी को भी बता नहीं पाई। मेरा मेरे पैरंट्स के सिवाय कोई नहीं। उनका भी कोई रिश्तेदार या दोस्त-सहेली नहीं है। हों भी तो कैसे! दोनों ड्रग-ऐडिक्ट (नशेड़ी) हैं। मुझे नहीं याद कि उन्होंने कभी मुझे प्यार से अपने पास बिठाना तो क्या कभी प्यार के दो बोल भी बोले हों। बचपन में कभी घर में खाने को कुछ न होता तो मेरे फ़ादर न जाने कहाँ से माँगकर या चोरी करके कुछ ले आते या फिर मैं भूखे पेट ही सो जाती। कभी भूख लगने पर अगर खाने के लिए उनसे कुछ माँगती तो गाली-गलौज के साथ मुझे हमेशा यही सुनने को मिलता, ‘न जाने कहाँ से हमने यह मुसीबत मोल ले ली। हमारा अपना तो गुज़र हो नहीं पाता, तो इस महारानी को कैसे पाले-पोसें। काश, हमने प्रेगनेंसी से छुटकारा पा लिया होता। लेकिन जब तक मालूम हुआ, बहुत देर हो चुकी थी।’” कहते-कहते सलोनी की हिचकियाँ बँध गई। आन्या ने जल्दी से पानी लाकर उसे पीने को दिया तो वह कुछ सँभली और बोली, “यहाँ तक कि सरकार द्वारा दिये जाने वाला उनकी अपनी बीमारी व मेरे लिए नियुक्त साप्ताहिक ‘चाइल्ड बैनिफ़िट’ भी घर के राशन की बजाय उनके नशे के लिए ख़र्च हो जाता . . . इसलिये वे मुझे सोशल-सर्विस वालों को भी सौंपने का सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी आमदनी कम हो जायेगी। मुझे डरा-धमका कर रखते कि अगर मैंने स्कूल में किसी टीचर या किसी बच्चे को घर के हालात के बारे बताया तो सोशल-सर्विस वाले उन्हें तो जेल में डाल ही देंगे और मुझे सड़कों पर भीख माँगने के लिए अकेली छोड़ देंगे।”

यकायक आन्या का हाथ पकड़कर सलोनी बोली, “क्या तुम जानती हो कि यह सब तो मैं सहन कर लेती थी . . . लेकिन जब-जब वे दोनों मुझे लताड़ा करते कि मैं उनकी औलाद हो ही नहीं सकती क्योंकि मैं किसी भी ऐंगल से उनकी बेटी दिखती ही नहीं . . . न उन जैसा रंग-रूप से, न नयन-नक़्श वग़ैरह, तो मेरा मन होता . . . मेरा मन होता कि मैं उस छठी मंज़िल पर उनके किराए वाले छोटे से फ़्लैट की खिड़की से कूद कर मर जाऊँ। लेकिन भगवान को शायद कुछ और मंज़ूर था। 

“मेरे सोलह बरस की होते ही उन दोनों की ज़बरदस्ती करने पर मैंने स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दुकानों में छोटी-मोटी नौकरी करनी शुरू कर दी। और अब उसी अनुभव के आधार पर इस ऑफ़िस में टैलिफ़ोन-ऑपरेटर की जॉब मिल गई। लेकिन मेरे पैरंट्स . . . वे नहीं बदले। दिन-रात का उनके द्वारा कोसना, 
‘तुम हमारी औलाद हो ही नहीं सकती . . . लगता है जिस रात तुम पैदा हुई, उस रात किसी नर्स ने हॉस्पिटल में ग़लती से तुम्हें किसी दूसरी बेबी से बदल दिया होगा’ . . .”

सलोनी ने फिर आन्या की मॉम की ओर मुँह कर कहना शुरू किया, “और आंटी, जब से इस नये ऑफ़िस में आई हूँ, तान्या की बार-बार कही बात मेरे अंदर घर करती गई कि मेरी शक़्ल उसकी बहन से कितनी मिलती-जुलती है। उस बात को मैं भूल तो जाती लेकिन जब आन्या ने उसकी बर्थडे पार्टी के बारे बात करते हुए उस हॉस्पिटल का नाम बताया तो मैं भौंचक्की रह गई कि उस दिन तो मैं भी उसी हॉस्पिटल में पैदा हुई थी . . . और एक दिन बातों-बातों में तान्या से पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी रात को ही पैदा हुई थी . . . प्लीज़ आंटी, मुझे ऐसी नज़रों से न देखें। वैसे आपका मुझ पर संदेह करना बनता भी है। इसीलिए मैं अपना बर्थ-सर्टिफ़िकेट भी साथ लाई हूँ . . .”

कहते हुए सलोनी ने अपने बैग में से एक पुराना सा काग़ज़ निकाल उन्हें दिखाया। और कहने लगी, “मेरा यक़ीन करें मैं आपके हँसते-खेलते परिवार में उथल-पुथल मचाने नहीं आई हूँ . . . और न ही आपसे यह आग्रह करने के लिए कि मुझे अपनी बेटी स्वीकार कर लें। क्योंकि ऐसा हो जाने से तो तान्या अपने बारे सब जान जायेगी . . . और एक इंसान होने के नाते मैं भला तान्या का बना बनाया घर-संसार क्यों उजाड़ूँगी! मेरी बात अलग है कि मैं तो उस नरक भरे जीवन को इक्कीस बरसों से बिताते हुए उसकी आदी हो चुकी हूँ . . .”

सलोनी की बात बीच में ही काटते हुए आन्या की मॉम बोलीं, “तुम मेरी असली बेटी हो या नहीं, लेकिन तुम्हारी कहानी सुनकर किस औरत का दिल नहीं पिघलेगा, वह भी जो दो बेटियों की माँ हो। तान्या तो अक्सर जब तुम्हारे बारे बात करती है तो चिंतित हो जाती है कि कोई तो ऐसी बात है जो इतनी सुन्दर व सलीक़े वाली होकर भी सलोनी चुपचाप, गुमसुम-सी, सभी से कटी-कटी रहती है। फिर भी अपनी व तुम्हारी तसल्ली के लिए अगर तुम व आन्या मेरे साथ किसी क्लिनिक में चलकर हम दोनों का डीऐनए टैस्ट करवा लें तो कैसा रहेगा?” 

यह सुनते ही सलोनी फिर से फूट-फूटकर रो पड़ी व बोली, “मेरा डॉक्टर भी यही डीऐनए वाली बात की सलाह दे रहा था . . . लेकिन मैं आप से यह बात कहने का साहस न कर सकी। मैं तो यही सोचकर आई थी कि मेरी बात सुनकर मुझे आप जो भी फ़ैसला सुनातीं और चाहे तो आप दोनों मुझे अपने घर से धक्के मारकर निकाल देतीं, मैं सिर झुकाए स्वीकार कर लेती।”

यह कहकर सलोनी उन दोनों से फिर से क्षमा माँग अपने घर की ओर रवाना हो गई। उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। उसे लगा जैसे वह उड़ान भरती हुई किसी नये ग्रह में आ पहुँची हो . . . जैसे कि आज उसका नया जन्म हुआ हो। उसका रोम-रोम कह रहा था कि आन्या व उसके माता-पिता ही उसका ख़ून हैं, और तान्या तो जैसे उसकी जुड़वाँ बहन हो क्योंकि उसी रात उसी हॉस्पिटल में दोनों जन्मीं थीं। 

♦    ♦    ♦

उधर तान्या के घर पहुँचने से पहले उसकी मॉम ने अपने पति को फ़ोन कर जल्द घर आने के लिए बोल दिया। उनके आते ही उन्हें चाय-नाश्ता करवा कर, फ़्रैश होकर लॉन में आने का कहकर वह और आन्या लॉन में अपना-अपना चाय का कप लिए आ गईं। आन्या के डैड अपनी पत्नी के चेहरे पर मुस्कुराहट मिश्रित घबराहट देखते ही समझ गये कि कोई बुरा तो नहीं, लेकिन अच्छा समाचार भी नहीं लग रहा। इससे पहले वह कुछ पूछते, पत्नी ने एक ही साँस में आरम्भ से लेकर अंत तक, जो आज अनहोनी हुई, वह बता दी। 

और फिर उनके अंदर का ग़ुबार न जाने कैसे और कब उफन कर बाहर आ गया और फूट-फूट कर रोते हुए कहने लगीं, “सलोनी को पहली नज़र देखते ही मुझे तो कुछ अंदर से यूँ महसूस हुआ कि जैसे मेरी अपनी ही इक्कीस बरस की आयु की डिट्टो कॉपी मेरे सामने आ खड़ी हुई हो। और फिर उसकी कहानी . . . कहानी नहीं दिल चीरने वाली बातें, आप भी सुनते तो काँप कर रह जाते। 

“लेकिन तान्या तो मेरी बेटी है, किसी और की कैसे हो सकती है? मैंने उसे अपना दूध पिलाया है, इतने लाड़-प्यार से पाल-पोस कर हमने बड़ा किया है। वह मेरी ही बेटी है, मैं उसके बिना मर जाऊँगी। और . . . और अगर उसे मालूम हो गया कि हम उसके पैरंट्स नहीं तो वह भी मर जायेगी। उन नशेड़ी मियाँ-बीवी को किसी भी मासूम व इतनी प्यारी बेटी को जन्म देने का ईश्वर ने अधिकार क्यों दिया? . . .”

आन्या के पिता ने अपनी पत्नी के टपकते आँसुओं को पोंछते हुए प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, “लेकिन तुम यह क्यों भूल रही हो कि जन्म देने से ही कोई पैरेंट नहीं बन जाता। एक बच्चे के असली माँ-बाप तो वही हैं जो बिना किसी शर्त या बिना कोई आस लगाये उसका लाड़-प्यार से पालन-पोषण कर उसे इस योग्य बनायें कि वह अपने पाँव पर ख़ुद खड़ा होना सीख जाये। तुम क्या समझती हो कि तान्या हो या आन्या, हमने क्या इन्हें इसी सोच को लेकर नहीं पाला? रही सलोनी की बात . . . अगर टैस्ट से साबित हो गया कि वह हमारी ही बेटी है तो भगवान का धन्यवाद करो कि वह हमें मिल गई और तान्या व आन्या को एक और बहन। लेकिन हमें यह बात टैस्ट के रिज़ल्ट आने तक तान्या से छुपानी होगी। मुझे केवल एक बात की चिंता हो रही है कि उन नशेड़ियों को भी यदि मालूम हो गया कि तान्या उनकी बेटी है तो वे कहीं कोई बवाल न खड़ा कर दें। अब तो केवल भगवान ही पर भरोसा करना होगा कि हमारी तान्या उनके कारण हमसे कभी जुदा न हो।”

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दो सप्ताह पश्चात एक-एक करके सलोनी व आन्या की मॉम के डीऐनए के टैस्ट आरम्भ हो चुके थे। 

आये सप्ताह क्लिनिक आने-जाने के कारण, अपने पहले माँ-बाप के सामने यह भेद खुल जाने के डर से, सलोनी ने ऑफ़िस के ही समीप अपने लिए एक कमरा किराए पर लेकर रहने का निर्णय ले लिया। और एक दिन शाम ढलने पर अपना छोटा-सा सूटकेस पैक कर, माँ-बाप को डरते-डरते गुड-नाइट कहकर वह उस फ़्लैट से निकल गई। अपनी बिल्डिंग के सामने वाली बड़ी सड़क के दूसरी ओर बने बस-स्टॉप पर खड़ी बस की प्रतीक्षा करने लगी। नशे की लत में शायद उन दोनों को ही यह बात समझ नहीं आई कि वह घर छोड़कर जा रही थी या फिर नीचे दुकान से कुछ खाने के लिए लेने गई है। वह तो पिता ने जब खिड़की से झाँका तो सलोनी को एक सूटकेस सहित बस का इंतज़ार करते देख आग-बबूला हो उठा। अपनी नशे की लत के लिए घर में बैठे-बिठाए मिल रही सलोनी की कमाई को यूँ हाथों से जाता देख उन दोनों के होश उड़ गये। अपने अर्धनग्न शरीर पर दोनों ने जैसे-तैसे कपड़े लपेटे और नशे में धुत्त वे नीचे आकर लड़खड़ाते हुए सड़क पार करने लगे। सुनसान रात के सन्नाटे में उस पार सलोनी को उनकी गंदी-गंदी गालियाँ साफ़-साफ़ सुनाई दे रहीं थीं। लेकिन तभी उसकी बस भी आ गई और उसने चैन की साँस ली। और चंद ही पलों में बस के बायीं ओर मुड़ते ही उसके माँ-बाप भी उसकी आँखों के सामने से ओझल हो चुके थे। 

सलोनी की बस को यूँ जाता देख सड़क के बीचों-बीच अचानक उसकी माँ का अपने गाउन की लटकती बैल्ट में पाँव उलझा और वह वहीं गिर गई। उसका पति भी उसके शरीर से ठोकर खाकर, या फिर राम जाने नशे के कारण, उसके ऊपर गिर गया। दूसरे ही पल तेज़ी से आती एक लॉरी उन दोनों को कुचलते हुए निकल गई। 

इस दुर्घटना में हुई उन दोनों की मृत्यु का समाचार सलोनी को अगली सुबह पुलिस ने उसके फ़ोन पर दिया जब वह उन्हें उस फ़्लैट में नहीं मिली और पड़ोसियों को उसका नया पता मालूम न था। 

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डीऐनए के परिणाम आते-आते महीनों लग गये। और निष्कर्ष भी वही निकला जिसकी सलोनी को पहले ही दिन से अनुभूति हो रही थी। फिर भी सलोनी बिना किसी परेशानी के अपने बायलॉजिकल (जैविक) पैरंट्स को पाकर उनके स्नेह में घिरी, उनसे अक्सर मिलती-जुलती रहती . . . परन्तु दूरी बनाये रखते हुए, ताकि तान्या को वास्तविकता की भनक न पड़े। क्योंकि उसने ठान लिया था कि वह हर पल तान्या की भावनाओं को ध्यान में रख हमेशा सतर्क रहेगी कि कहीं उसके कारण उसे कोई ठेस न पहुँचे। 

परन्तु इतनी बड़ी बात कब तक छुपाई जा सकती थी, यह सोच-सोचकर बेटियों के माता-पिता इसी दुविधा में रहने लगे। अन्तत: पति-पत्नी ने निर्णय लिया कि तान्या का उनमें विश्वास बनाये रखने के लिए यह बात उन्हीं के मुख से तान्या को मालूम हो, न कि किसी अजनबी व्यक्ति या किसी अनजान स्थिति के चलते। एक रविवार सही समय जानकर उन दोनों ने उसे प्यार से अपने पास बिठाकर बड़े सादा से शब्दों में आरम्भ से लेकर अंत तक की सारी वास्तविकता बता ही दी। 

तान्या को संदेह तो हो ही रहा था कि कुछ दिनों से घर का वातावरण अचानक कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। उसके परिवार वाले केवल उसी के लिए क्यों अचानक इतने सुरक्षात्मक होने लगे हैं व आन्या का नहीं बल्कि उसकी छोटी-छोटी बात-बात का ध्यान रखने लगे हैं। अब सब स्पष्ट हो जाने पर वह बिना किसी को बताये सलोनी के घर अकेली पहुँच गई। 

सलोनी उसे अचानक अपने दरवाज़े पर खड़ी देख घबरा गई। तान्या का चेहरा उतरा हुआ था और आँखें रो-रोकर सूजी हुईं। लगभग दो घंटे पहले ही तो सलोनी को उसके पैरंट्स का फ़ोन आया था कि उन्होंने तान्या को सच बता दिया है। सलोनी ने उसे कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि लेकिन यह क्या? तान्या ने उसे आगे बढ़कर गले लगा लिया और बोली, “मैं तुमसे माफ़ी माँगने आई हूँ . . . अपनी इक्कीस बरस की ज़िंदगी में तुमने जो-जो दुख और कष्ट सहे वह तो मेरे हिस्से के थे। तुमने अपना पूरा बचपन भूख और तंगी में गुज़ारा और मैं . . . और मैं जिसके मॉम-डैड ने कभी मेरे मुँह से उफ़ तक न निकलने दी। अब तुम्हारे वो इक्कीस साल तो मैं लौटा न सकूँगी लेकिन . . . लेकिन आज तुम्हें कुछ देना चाहूँगी ताकि तुम्हारे उन घावों पर कुछ मलहम लग सके और आने वाली ज़िंदगी में फिर कभी कोई कष्ट या दुख तुम्हारे आस-पास भी फटकने न पाये। चलो, अपना सामान पैक करो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर ले जाने आई हूँ।”

यह सुनते ही सलोनी अपने जीवन में पहली बार किसी के गले लगकर रोई। वह और कोई नहीं उसकी अपनी सहेली थी जो बहन बनकर उसे अपनाने आई थी। और जिसने अपने प्रेम व समझदारी से न केवल अपने माता-पिता व छोटी बहन की बल्कि उस की भी दुविधा दूर कर दी थी। अब सलोनी चोरी-छिपे नहीं तान्या के सामने मॉम को आंटी न कहकर मॉम व डैड को अंकल न कहकर डैड कह सकती थी। 
 

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