नक़ाब हों या सेहरे

15-02-2025

नक़ाब हों या सेहरे

मधु शर्मा (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन
22    22    22

 

नक़ाब हों या सेहरे,
छुप न सकेंगे चेहरे।

 

मेहमाँ थे कुछ दिन के,
डाले बैठे हैं डेरे।

 

शब के पिरोए मोती,
बिखरे सवेरे सवेरे।

 

छट जायेगी मुसीबत,
चाहे कब से हो घेरे।

 

ग़म आयें तो मेरे हों,
ख़ुशियाँ हिस्से तेरे।

 

इस जन्म के नहीं ये,
हैं जन्म-जन्म के फेरे।

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