दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    2122    212 
 
आस्थाएँ तोड़ने वाला बड़ा बदनाम है
बेयक़ीनी का भरोसेमंद पर इल्ज़ाम है
 
ख़ून के रिश्तों का देखो लोगो क्या अंजाम है
भाई बहनों के भी रिश्ते होते अब बदनाम है
  
ईंट-गारे का मकाँ ही दर हक़ीक़त घर नहीं
उसको मिलकर घर बनाना भी सभी का काम है
 
आस्तीं के साँप का कोई भरोसा ही नहीं
दोस्ती की आड़ में दुश्मन का मिलना आम है
 
इश्क़ में नाकाम होने का मलाल ऐसा भी क्या
हर मुहब्बत की कहानी का यही अंजाम है
 
ख़ार-सी चुभती ही रहती हैं वो बातें सीने में     
दिल को ज़ख़्मों की कसक से कब मिला आराम है
 
जी रहे हो तुम वहाँ पर, मैं यहाँ ‘देवी’ मगर
फ़ासलों को पाटने में दोनों क्यों नाकाम है
 

<< पीछे : 108. क्या करता है तेरी मेरी, इन… क्रमशः

लेखक की कृतियाँ

अनूदित कहानी
कहानी
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो