दरिया–ए–दिल

 

2122    1212     22
 
क्या ये क़िस्मत की आज़माइश है
या लकीरों की कोई साज़िश है
 
बिजलियों के निशाने पर है घर
गर्दिशों की बड़ी सताइश है
 
घुस के आईं सियासतें घर में
ग़ैरतों की अजब नुमाइश है
 
वो जो आये बुलाये बिन महमाँ 
साथ फ़रमाइशों की बारिश है
 
माना है वक़्त आज़माइश का
फिर भी इसमें निहाँ नवाज़िश है
 
हो बुलंदी अगर इरादों में
समझो होने को पूरी खाइश है
 
सुर्ख़रू हो यहाँ वहाँ ‘देवी’
हर दुआ में यही गुज़ारिश है

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