दरिया–ए–दिल

 

122    2122    2122    212
  
देखो समझो फूल काँटे का चलन संसार में 
राह जीने की मिलेगी तुझको भी व्यवहार में 
 
चार पैसे आते ही बदला चलन और चाल भी 
जाने कैसे आ गया बदलाव फिर गुफ़्तार में 
 
आदमी का आदमी से दिल का नाता है जुड़ा
मोती दिल दिल का पिरो लो धड़कनों की तार में 
 
सोचों के मंझधार में वो बह गई क्यों, क्या पता 
जाने ऐसा क्या था देखा उसने बहती धार में 
 
जब ज़ुबां की बात ‘देवी’ ना समझ पाओ कभी 
भावनाएँ ढूँढ़ लेना इन लिखे अश्यार में
 

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