दरिया–ए–दिल

 
221    2121    1221    212
 
गीता का ज्ञान कहता जो सुन उसको लीजिये
जो कुछ भी हो रहा है, यहाँ होने दीजिये
 
अहसान गर समझते हो, फिर तो न कीजिये
किसको न दान दीजिये किससे न लीजिये
 
मेहनत लगन से पाओगे तुम अपने लक्ष्य को
नाकामियों का दोष किसी को न दीजिये
 
बेबस ज़माना होगा यूँ सोचा न था कभी
कुदरत जो चाहती है उसे भांप लीजिये
 
खुद से नज़र मिलाने की तौफ़ीक़ गर नहीं
आईना जो दिखा रहा वो देख लीजिये
 
होनी को कौन टाल सका आज तक यहाँ
वो काम अपना जानती है, करने दीजिये
 
‘देवी’ भला बुरा यहाँ होता नहीं कोई
बस चल रहा है वक़्त बुरा जान लीजिये

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