दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    2122    212 
 
वो खिवैया बनके आएगा मिरा विश्वास है
पार कश्ती को उतारेगा मिरा विश्वास है  
 
कल थी बारिश आज सूरज फिर उगेगा घर मिरे  
हर अंधेरे को मिटाएगा मिरा विश्वास है
 
ग़फ़लतों की नींद में मुझको सुलता है अभी  
कल वो निश्चित ही जगाएगा मेरा विश्वास है 
 
रात दिन पल पल टटोले है मेरी वो आस्था 
एक दिन ठहराव लाएगा मिरा विश्वास है
 
वक़्त ने करवट जो बदली है करोना काल में
यह कोई बदलाव लाएगा मिरा विश्वास है
 
देख कुदरत के करिश्मे, उठती नज़रें झुक गईं  
इक नया युग फिर से आएगा मेरा विश्वास है 
 
रिश्ते नातों की जो जाने अहमियत ‘देवी’ वही
सुख में, दुःख में वो निभाएगा मिरा विश्वास है 

<< पीछे : 98. बेसबब, बेवक़्त अपनों की मलामत… आगे : 100. आओ इस महफ़िल में आओ, झूमकर… >>

लेखक की कृतियाँ

अनूदित कहानी
कहानी
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो