दरिया–ए–दिल

 

221    2122    221    2122 
 
तारीकियाँ मिटा दो, इक बार मुस्करा दो
दिल में दिए जला दो, इक बार मुस्करा दो
 
कोई दग़ा दे तुमको उसको भी तुम दुआ दो
इस फ़र्क़ को भुला दो इक बार मुस्करा दो
   
ख़ुशरंग, ख़ुशनुमा मैं शहज़ादी ख़्वाब की हूँ 
तितली समझ उड़ा दो, इक बार मुस्करा दो
 
नफ़रत की जो दबी है चिंगारी दिल में कबसे
उसको न तुम हवा दो, इक बार मुस्कुरा दो
 
गुमसुम सी है यह गलियाँ, गुमनाम रास्ते भी
हर ख़ौफ़ को भगा दो, इक बार मुस्कुरा दो
 
यह ज़िंदगी भी कटते कटते कटेगी यारों
जो दे दग़ा दुआ दो, इक बार मुस्कुरा दो
 
सुरताल में ये महफ़िल सजने लगेगी फिर से
कोई ग़ज़ल सुना दो, इक बार मुस्कुरा दो
 
हर इक अदा का क़ायल, दीवाना दिल है ‘देवी’  
जीना इसे सिखा दो, इक बार मुस्कुरा दो

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