दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22  
 
जो हमेशा था जीतता मुझसे
जीतकर क्यों है हारता मुझसे
 
मुस्कुराहट है रूठती जब जब
आईना भी है रूठता मुझसे
 
हूँ तलबगार दीन दुनिया की
क्यों यह किरदार जूझता मुझसे
 
बरसों ज़िंदा था मुझको मारा क्यों
ये ज़मीर आज पूछता मुझसे ?
 
‘कल का निर्माण मैं करूँगा” यह
एक मासूम कह रहा मुझसे
 
कहना तुम ‘वाह-वाह’ सुनके ग़ज़ल
ऐसे वह दाद माँगता मुझसे
 
कैसी रुसवाइयाँ हैं, कैसा डर
जानना दिल ये चाहता मुझसे 
 
इब्तदा क्या है, जो न ये जाने
पूछता दर्द इंतिहा मुझसे?
 
‘अग्निपथ है ये’ चल सकोगे क्या?
पूछे ‘देवी’ ये रास्ता मुझसे

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