दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22 
 
दूर जब रात भर तू था मुझसे 
बातें करता रहा कमर मुझसे
 
वो भी अपना है ग़ैर तू भी नहीं  
बेझिझक दिल की बात कर मुझसे 
 
चल रही बात तेरी मेरी यहाँ 
खुल के साँझा तू कर न डर मुझसे 
 
मंच संवाद का है, मौक़ा भी 
मैं हूँ तुझसे तू बाख़बर मुझसे 
 
मैं हूँ रहगीर राह का तेरी
राह क्यों पूछता मगर मुझसे
 
छीनकर कर न तू मुझे बेघर 
देख कुछ और माँगकर मुझसे 
 
मन की गाँठें तू खोल ऐ ‘देवी’
करती क्यों है अगर मगर मुझसे 

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