दरिया–ए–दिल

  
2122    2122    2122    212
 
खो गया है गाँव मेरा पत्थरों के शहर में
क्या कहूँ खोया है क्या क्या पत्थरों के शहर में
 
खो गई संवेदना भी ज़िंदगी की राह पर
क्या था बोया क्या है पाया पत्थरों के शहर में
 
इल्म का गर दूर तक नाता अमल से ही न हो
कुछ न हासिल फिर तो होगा, पत्थरों के शहर में
 
दूध में पानी मिला हो या हो पानी दूध में
हो रहा है फिर भी सौदा, पत्थरों के शहर में
 
देख ‘देवी’ कितनी हैं आसानियाँ दुश्वारियाँ
रोज़ जी जी कर है मरना पत्थरों के शहर में
 
उगते हैं काँटे कहीं और फूल फल ‘देवी’ कहीं
क्या पता किसने क्या पाया पत्थरों के शहर में

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