दरिया–ए–दिल

2122    2122    212
 
मत दिलाओ याद फिर उस रात की
छत बिना उस घर की, उस बरसात की
 
जानता है वो जो गुज़रा दौर से
तुम नहीं हद जानते बर्दाश्त की
 
इस उदासी का सबब पूछो न तुम
लौटी  यादें  लौटती  बारात की
 
‘एक माँगो दस मिलेंगे’ मत कहो
देखो समझो बात यह औक़ात की
  
इक नई पहचान पाकर कह उठा
बात अपनी जात की, औक़ात की
 
जिंदगी को दाव पर रखकर न तुम
बात भूले से करो शह मात की
 
कुछ न ‘देवी’ कह सकी थी इसलिए
दी क़सम थी प्यार की, सौग़ात की
 

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