दरिया–ए–दिल

 

1212    1122    1212    22
 
वो कैसे बोझ का दिल पर ले ग़ुबार चले
जो साथ अपने हमेशा लिये बहार चले
 
कली कली यूँ पुकारे आज भवरों को 
‘चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’
 
हमारी बज़्म में पहचान उनसे और बढ़ी
हमें जो साथ वहाँ लेके नामदार चले
 
दुकां खुली हो अगर आस-पास झूठ की, सच की
बहुत कठिन है वहाँ सच का रोज़गार चले
 
थी धोखा देने की, पाने की, रस्म बीच उनके 
दिए वो जाते, ये खाते बार बार चले
 
अहद किया था कभी ‘साथ हम निभाएंगे’
ज़रा सी बात पे वो तोड़कर क़रार चले
 
उसे ले आया सही राह पे जो कल ‘देवी’ 
उसीकी राह को करके नागवार चले 

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