दरिया–ए–दिल

 

122    2122    2122    212
 
बेसबब, बेवक़्त अपनों की मलामत मत करो
सामने अपनों के ग़ैरों की हिमायत मत करो 
  
नेकनामी का अगर तुम को ढिंढोरा चाहिए  
काम कोई नेक करने की इनायत मत करो 
  
शर्म से सर को झुककर जो खड़ा हो सामने 
सर उठाकर गर्व से उसकी नदामत मत करो
 
आसरा मत छीन उसका जो शरण आया तेरी
दिल में मतलब रख के तुम उसकी हिफ़ज़त मत करो
 
बिन किसी तहमीद के बाँधे कहो जो कुछ कहो 
घोलकर बातों में कड़वाहट अदावत मत करो 
 
गर ज़मीर अपने को ज़िंदा रख नहीं सकते हो तुम 
बेवजह फिर तुम उसूलों की वकालत मत करो 
 
कर दिया करना था जो, सोचे बिना समझे ना 
गर अक़ीदत ही नहीं तो फिर इबादत मत करो
 
दिल फ़रेबी जाल हैं दुनिया में देखो जिस तरफ़ 
इनको ‘देवी’ आज़माने की हिमाक़त मत करो

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