दरिया–ए–दिल

दरिया–ए–दिल  (रचनाकार - देवी नागरानी)

पुरोवाक्‌

 

जज़्बात बयान करने का फ़न भी है ज़रूरी 
हर एक क़लमकार तो शायर नहीं होता

अपने मन के अहसासात को शब्दों में पिरो कर बख़ूबी पेश करने की कला में माहिर आदरणीय देवी नागरानी जी से मेरी पहली मुलाकात मुंबई में उनके निवास स्थान पर हुई थी। इस मुलाकात के सूत्रधार बने थे कवि श्री सतीश शुक्ला। देवी नागरानी जी से साक्षात मिलना किसी स्वप्न से कम नहीं था। मैंने आप की ग़ज़लें कई पत्रिकाओं में पढ़ीं थी और ऐसी श्रेष्ठ ग़ज़लकारा से मिलकर रोमांचित हो रहा था। आप की मेहमान नवाज़ी ने भी गहरा प्रभाव छोड़ा।

आप हिंदुस्तान और न्यू जर्सी यूएसए में अपने जीवन को ख़ुशहाली से व्यतीत करती हुई जनसाधारण को और विशेषकर अपने सुधि पाठकों को अपनी नई ग़ज़ल की पुस्तक “दरिया-ए-दिल” से मालामाल करने जा रही
हैं, इसके लिए आप को, आपके परिजनों, मित्रों, पाठकों को हृदय से बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कर रहा हूँ।

आपके पास समृद्ध शब्दकोश है और ग़ज़ल की बारीक़ एवं तकनीकी जानकारी भी है। आपकी ग़ज़लों में जदीद और प्रगतिशील विचार पाठकों को स्वतः ही सहजता से जोड़ने में सक्षम है। ग़ज़ल के शेर गुफ़्तगू करते हुए प्रतीत होते हैं। इनमें कोमलता, माधुर्य, सौंदर्य चुटीलापन आदि सब मौजूद है। शेर की दो पंक्तियों में सब कुछ कह देने की चुनौती पर आप की ग़ज़लें खरी उतरती है। ग़ज़ल की अनुशासन बद्ध विधा के नियमों और परंपराओं का पालन करते हुए आपने अपनी ग़ज़लों में सभी सामाजिक मुद्दों को, सामाजिक सरोकारों तथा विसंगतियों को बख़ूबी उकेरा हैं बदलते दौर में बदलती सियासत, बदलते नैतिक मूल्यों पर भी आप पैनी नज़र रखती हैं। आम आदमी की ज़िन्दगी के इर्द गिर्द घूमती हुई शायरी आम पाठक को विशेषतः पसंद आएँगी। 

आप की ग़ज़लें कथ्य और शिल्प, दोनों ही मापदंडों पर खरी उतरती हैं। इनमें जीवन दर्शन और संस्कृति, मानवता, प्रेम, समर्पण, करुणा जैसे भाव प्रमुखता से देखे जा सकते हैं। आप जो अदब की सेवा कर रही हैं, उसे सदा याद किया जाएगा। आपका यह ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। ऐसा विश्वास है। रंगों से लबरेज़ शायरी बड़े शौक़ से पढ़ी व गुनगुनाई जाएगी। इन ग़ज़लों को मक़बूलियत मिले, इसी दुआ के साथ . . . 

क्या मेरी पहचान है, क्या जात क्या औक़ात क्या
नेक नामी संग मेरे कर रहा कोई और है
 
खो गई संवेदना भी ज़िन्दगी की राह पर
क्या था बोया क्या है पाया पत्थरों के शहर में
 
शहर से अब गाँव को और गाँव से उस धाम ‘देवी’
बांवरा मन आजकल क्यों लौट जाना चाहता है
 
इल्म हो लेकिन अमल का दूर तक बर वास्ता
कहना करना एक सा हो ये ज़रूरी तो नहीं
 
आज की ताज़ा ख़बर कल की बनेगी तारीख़
ऐसी ख़बरों को कोई रोज़ पढ़ेगा कब तक

आपका शुभेच्छु
—अजय अज्ञात
फ़रीदाबाद, 
मोबाइलः 96501 94445

<< पीछे : कुछ शेर आगे : 61. कर दे रौशन दिल को फिर से वो… >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो