दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22
 
कैसे उजड़े हैं आशियाँ देखो
ढह गए घर जहाँ मकाँ देखो
 
कैसी चिंगारियाँ हैं फैली ये
जल रहे आशियाँ कहाँ देखो
 
जिसने फहराया जीत का परचम
कितनी हारी है बाज़ियाँ देखो 
 
थे सिकंदर जो इस ज़माने के
उनकी मग़रूर शोख़ियाँ देखो
 
फ़ुरसतों में करेंगे बातें फिर
कह रहा है बेज़ुबाँ देखो
 
बाढ़ कैसी है आई आँखों में
दर्द का कारवाँ रवाँ देखो
 
दूर रहकर किनारे साथ रहे
फ़ासले ‘देवी’ दरमियाँ देखो

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