दरिया–ए–दिल

2122    122    112
 
रात को दिन का इंतज़ार रहा
रोशनी पर जो ऐतबार रहा
 
मेरा जिस पर भी एतबार रहा
उसका मुझ पर भी अख्तियार रहा
 
वह जहाँ का था पोतीदार1 रहा 
उम्र भर उनका बाक़ीदार रहा
 
जाने कैसा है रोज़गार उसका
वो हमेशा से क़र्ज़दार रहा
 
था वो माहिर तो चूकता कैसे
छोड़ा जो तीर आर पार रहा
 
कोई बैठा है मुझमें मुझ जैसा  
रात दिन वह मुझे पुकार रहा
 
प्राण जाए वचन न जाए, वो
अपने वादे का पायदार2 रहा
 
लेता ‘देवी’ वो इन्तेकाम उससे 
जो नज़र में कुसूरवार रहा 
 
पोतीदार रहा=खजांची; पायदार=पक्का, दृढ़

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