दरिया–ए–दिल

 

अंतस में जब खलबली होती है, जब मौन सुलग सुलग उठता है, तब क़लम आग उगलने लगती है। हज़ार मना करने पर भी जो चुप नहीं रह पाता, वही शायर होता है। एक शब्द है मरजिसा—इस शब्द का अर्थ होता है मर-मर कर जीने वाला, मुश्किल जगहों पर जाकर काम धंधा व्यापार करने वाला। इसका दूसरा अर्थ होता है
गोता ख़ोर। गहराइयों में भी गोता लगाने वाला शायर भी मरजिसा होता है। उसकी चेतना सुलगी हुई होती है। उसकी प्रज्ञा प्राणवान होती है। उसकी हिम्मत लाजवाब होती है। वो मर-मर कर जीने की ज़ुर्रत रखता है। जीवन में उसकी पैठ होती है, क्योंकि वह मरना जनता है। हाँ, शायर मरजिसा कहलाता है, जिसको मरना आता है उसे ही महावीर कहते हैं। शायर महावीर है, शायर मन खोजी है, उसकी पैठ गहरे पानियों में है। वही
अनमोल मोती ला सकता है, सोये हुओं को जगा सकता है, इन्कलाब की मशाल लेकर क़ाफ़िलों की रहनुमाई कर सकता है। शायर व्यवसायी नहीं, विद्रोही होता है। कहा गया है— कवसः क्रांति दर्शनः कवि क्रांति के बीज बोता है। कवि विद्षक कदापि नहीं होता उसमें समाज को बदलने की क्षमता होती है। कविता मन बहलाने का साधन नहीं, कविता को तो ‘ब्रह्मानंद सहोदरो’ कहा गया है। इसीलिये तो एक कवि ने कहा—

कहीं शौक़ मत समझना ये मेरे अशयार
ये सजदे हैं, ये मेरे पूजा का संसार! 

एक राज़ की बात बताएँ—कान में करने वाली बात है। शायरी सन्तत्व के पहले की पायदान है। शायरी फ़क़ीरी की राह है, उसके दर की फ़क़ीरी की आख़िरी अमीरी की राह है। शायरी से बढ़कर एक ही अमीरी है— फ़क़ीरी! उसके बाद और कोई साहूकारी नहीं। शायरी आख़िरी ऐश है—Last Luxuary है। 

समंदर की गहराई है शायरी। शायर उस गहराई में गोते लगाता है। अमूल्य मोती-माणिक लेकर साहिल पर दुनिया में लौट आता है। उन्हें बाँटता है, दर्दमंदों, जिज्ञासुओं के बीच। अनन्त की प्यास बढ़ाता भी है और बुझाता भी है। फ़क़ीरी उससे आगे की मंज़िल है—शायरी से ज़्यादा दूर नहीं। फ़क़ीर गहराई में गोता लगाता है और ख़ुद गहराई बन जाता है। वह लौटता नहीं। 

लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल। 

देवी जी उसी राह पर चल पड़ी है। डर और डगमगाहट स्वाभाविक है, शुरू शुरू का सफ़र है। मासूमियत की चाल होती है, तुतलाहट की ज़ुबान होती है। परन्तु बेशक राह फ़क़ीरी की है। दर्द, दीवानगी, बेचैनी, उदासी आदि इस राह के लक्षण है। देवी जी के पास यह कच्चा सामान प्रचुर मात्र में है। वरना क्यों अमरीका का मायावी माहौल छेड़-छाड़ कर बारहा भारत में आती है और शायरी की ख़ुश्बुओं को बाँटती है। यक़ीनन उनके पास फ़क़ीरी का कच्चा माल है। सिन्धी सूफ़ियों का ख़ून उनकी रगों में रवाँ है। ये वो ही कुछ कहना चाहती है, जो नानक, दादू, कबीर ने कहा है। अलबत्ता मंज़िल अपनी अपनी होती है, माल तो वही है! सिन्ध के महान सूफ़ी कवि शाह अब्दुल लतीफ़ भिटाई के शब्दों में देवी जी और उनके पाठकों को यह कहना चाहूँगा। 

“वे पुजारी (जिज्ञासु) सच धन्य है, जिन्होंने अनंत में से अमोल मोती जवाहर लाये, जीवन लहरों में से जिन्होंने लाल हासिल किए।” लतीफ़ कहते हैं कि “वो माल अमोल है, उसकी क़ीमत का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता!” 

और अंत में यह अभिलाषा-पुजारियों, पाठकों, जिज्ञासाओं को ‘दरिया-ए-दिल’ से अगर माल का मासा भर भी उपलब्ध हो तो वे धन्य-धन्य हैं—तथास्तु व आमीन। 

—लक्ष्मण दूबे

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