दरिया–ए–दिल

 

2122     2122     212
 
रात का पर्दा उठा मेरे ख़ुदा
तीरगी से हूँ डरा मेरे ख़ुदा
 
तेरे बिन किससे करूँ फ़रियाद मैं
तेरा ही है आसरा मेरे ख़ुदा
 
खो गया हूँ मैं ख़ुदी में इस क़दर
मुझको ग़फ़लत से जगा मेरे ख़ुदा
 
जानता जो ज़ीस्त के हर राज़ को
कौन है तेरे सिवा मेरे ख़ुदा
 
फँस गई हूँ फ़लसफ़ों के जाल में
कर दे ‘देवी’ को रिहा मेरे ख़ुदा

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