दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22
 
नाम मेरा मिटा दिया तूने
क्या ही अच्छा सिला दिया तूने
 
करके गुमराह क्या मिला तुझको
घर से बेघर बना दिया तूने
 
राज़ से है उठा दिया परदा
उस पे चर्चा बढ़ा दिया तूने
 
मेरे नग़मों में मेरी उलझन थी
उनको सुलझा के गा दिया तूने
 
मेरी बेताबियों की रुसवाई
करके जग को हँसा दिया तूने
 
सोए तारों को छेड़कर ‘देवी’
आज सब को रुला दिया तूने

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