दरिया–ए–दिल


2122    2122    2122    212
 
अपनी मुट्ठी से निकलकर वो पराई हो गई
बात लोगों तक जो पहुँची, जग हँसाई हो गई
 
पहले अनबन थी मगर अब दुश्मनी इतनी बढ़ी
तू तू मैं मैं से शुरू होकर लड़ाई हो गई
 
ठंड जाड़े की न थी, बस बात थी बरदाश्त की
गोद माँ की फिर तो बच्चों की रजाई हो गई
 
ऐसे ऐसे हैं अदीब उनका बड़ा ही नाम है
जिनके लेखन से जहाँ में रोशनाई हो गई
 
मार्गदर्शन कर रहा था तजुर्बा उनका बहुत
बस दिशा मिलती रही और रहनुमाई हो गई
 
भर गया आँखों में ख़ालीपन वो मंज़र देखकर
जब उठी दुलहन बिना डोली विदाई हो गई 
 
रिश्तों के पैबंदों की दास्तानें हैं अजब
करते तुरपाई उन्हीं से आशनाई हो गई 
 
माँग अनचाही न पूरी कर सके माता पिता
बोले बिन ग़ुर्बत की ‘देवी’ जग हँसाई हो गई

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