दरिया–ए–दिल

 

22    2122    2122    212
 
हर किसी से था उलझता बेसबब
मोल लेता था वो झगड़ा बेसबब
 
बात तेरी-मेरी है उसकी नहीं
बीच में फिर भी है पड़ता बेसबब
 
गूँगा बहरा है उसे यह इल्म था
फिर भी उससे बातें करता बेसबब
 
ख़ुद समझ कर भी न समझा नासमझ
औरों को समझाता फिरता बेसबब
 
इक तबीयत उसकी थी इक मेरी थी
दोनों में तकरार होता बेसबब
 
लेने देने की न कोई बात थी
मशवरा बस दे दिया था बेसबब
 
सोना लेने जब वो उतरा खान में
जान से धो हाथ बैठा बेसबब
 
रिश्ता ख़ुद से जो निभा पाया नहीं
वो ही सबको आज़माता बेसबब
 
कुछ किसी का है कहाँ ‘देवी’ बता
फिर भी तेरी मेरी करता बेसबब। 

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