दरिया–ए–दिल

2122    2122    2122    212
 
दिल का क्या है, काँच की मानिंद बिखरता जाएगा
कर्चियाँ बन मन की आँखों में ठहरता जाएगा
  
जो ले आता है अंधेरों को उजालों में वही
बुझने पर वो ख़ुद खला में बस उतरता जाएगा
 
एक पल मुझको रुलाता है,  हँसाता दूसरा
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का यूँ गुज़रता जाएगा
 
भीड़ में सौदागरों के आइने हूँ बेचती
मेरी आँखों में जो देखेगा सँवरता जाएगा
 
जो सदन का सबसे रोशन है दिया, तू याद रख
वक्त की इक फूँक से वो भी बिखरता जाएगा
 
मेरा चहरा है कोई अख़बार का पन्ना नहीं
देखने, पढ़ने से जिसको कोई डरता जाएगा
 
पाँव जो टिकता न था साहिल की गीली रेत पर
धीरे धीरे पानी में वो भी उतरता जाएगा 
 
शायरी क्या चीज़ है, जाना करो समझा करो
रफ़्ता रफ़्ता वो नशा बन, दिल में घर कर जायेगा
 

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