दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    212
 
इंतज़ार उसका किया था भोर तक
मिलने की शिद्दत में जागा भोर तक
 
बेहताशा उसको ढूँढ़ा भोर तक
शाम से जो गुम था साया भोर तक
 
उसकी जानिब दो क़दम चल भी न पाया
सौ क़दम चलकर वो आया भोर तक
 
बंदगी क्या है वो ही है जानता 
जिसके सर रहमत का साया भोर तक
 
कुछ न हो, बस भोर हो, बस भोर हो
रात दिन ‘देवी’ ने चाहा भोर तक

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