दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    2122    2122    212
 
धीरे धीरे दूरियों से आशना हो जाएगा
‘आदमी से आदमी का फ़ासला हो जाएगा’
 
बेवजह खिलवाड़ करना ज़िन्दगी से छोड़ दे
सर सलामत हो न हो, तू सरफिरा हो जाएगा
 
राह में अवरोध बनकर आएँगी कठिनाइयाँ
तुम सँभल कर आगे बढ़ना, रास्ता हो जाएगा
 
दो क़दम पैरों पे अपने चल के तू आगे तो बढ़
हौसला तेरा बढ़ेगा, तू बड़ा हो जाएगा
 
शौक़ कोई भी बुरा-अच्छा नहीं होता कभी
शौक़ गर आदत बनेगा बेमज़ा हो जाएगा
 
एक पत्थर को पिघलना गर सिखा पाओ जो तुम
हर नज़र में काम तेरा मोजज़ा* हो जाएगा
 
बात मन में और ही कुछ पर ज़ुबाँ पर और कुछ
बात का ‘देवी’ मज़ा फिर किरकिरा हो जायेगा

 

मोजज़ा=चमत्कार

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