चढ़ा था जो सूरज
देवी नागरानीचढ़ा था जो सूरज सदा वो ढला है
नई एक सुबह कोख में जो पला है।।
न शिकवा शिकायत न कोई गिला है
मिला जो ऐ किस्मत तुम्हीं से मिला है।।
ये मन दोस्त दुश्मन मेरा बन गया है
वही ढूँढे बाहर जो अन्दर बसा है।।
बड़ी बे वफ़ा जिन्दगानी को कहते
"वफ़ा" नाम बस मौत को ही अता है।।
न कर नाज ऐ मौत खुद पर भी इतना
सबक ज़िन्दगी से वफ़ा का मिला है।।
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