दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    2122    212
 
‘हम हैं भारत के' बताकर एक फिर से हो गए
गीत ‘वैषप्णव जन’ का गाकर एक फिर से हो गए
 
मातृभूमि ही वतन है, मातृभाषा माँ हमार’
लोग नारा यूँ लगाकर एक फिर से हो गए
 
कोई चारा जब न था तब भाईचारा था वहाँ
हिंदू मुस्लिम ‘कर’ मिलाकर एक फिर से हो गए
 
हम हैं भाई भाई कहके जब गले मिलने लगे
नफ़रतें सारी भुलाकर एक फिर से हो गए
 
क्रूरता का सामना बेबस करें, कैसे कहो
रंजिशें बस कुछ भुलाकर एक फिर से हो गए
 
दूरियाँ नज़दीकियाँ अब स्वाहा होकर रह गईं
बस्तियाँ अपनी बसाकर एक फिर से हो गए
 
थी परस्पर साथ में मंदिर के मस्जिद भी वहाँ
दोनों के दिलदार-दिलबर एक फिर से हो गए 
 
एकता के सात सुर हर भाषा में बजने लगे
सुर से सुर ‘देवी’ मिलाकर एक फिर से हो गए 

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