दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    2122    212
 
पंछियों के बालों पर थे, पर सरों का क्या हुआ
नीड़ में जो थे बसाए, उन घरों का क्या हुआ
 
नींव आँगन की हिली तो हिल गई दीवार भी
लड़खड़ाई पीढ़ी क्यों, उन आसरों का क्या हुआ
 
क्यों नया इतिहास कोई लिख रहा है याद में
जिनकी तड़पी आह थी, उन शायरों का क्या हुआ
 
क्यों बहारों में ख़िज़ाँ की याद बरबस आ गई
जो कली मसला किये उन कायरों का क्या हुआ
 
डगमगाती नाव देखी उस तूफ़ानी रात में
आँखों से ओझल हुए उन लंगरों का क्या हुआ
 
सूद तेरा हम चुका पाए कहाँ ऐ ज़िन्दगी
क़र्ज़ तूने भी लिए कुछ, उन करों का क्या हुआ
 
तिनका तिनका लोग बिखरे उस तूफ़ानी रात में
तिनकों से ‘देवी’ बसे घर उन छतों का क्या हुआ

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