दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    212
 
होती बेबस है ग़रीबी क्या करें
जब ख़रीदे है अमीरी क्या करें
 
रेज़ा रेज़ा ख़्वाब जब-जब हो गए
तब ख़लिश सहनी पड़ी थी क्या करें 
 
ग़ैबतों के डर के ताले जब लगे 
बंदिशें बरदाश्त तब की, क्या करें
 
पाँव ढांपें या ढकें सर, या ख़ुदा
है रिदा क़द से भी छोटी क्या करें? 
 
तल्ख़ियाँ छोटी बड़ी हर रोज़ की
साथ में है बदनसीबी क्या करें? 
 
लोग जब चेहरे को पढ़ने लग गए
तब पड़ी नज़रें चुरानी क्या करें
 
उसकी फ़ितरत मेरी फ़ितरत थी अलग
बात बनते बनते बिगड़ी क्या करें? 
 
जब लकीरें सोच की मिलती नहीं 
लाज़िमी तकरार ‘देवी’ क्या करें

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